सावधान !!!!!! सावधान !!!!!! सावधान !!!!!! सम्पूर्ण समाज, धर्मावलम्बियों और विरासत प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण सूचना और सन्देश।
Alert to whole Jain community, followers and heritage lovers…. It is time to wake up for all Jains and Heritage Lovers !!!
जय जिनेन्द्र मित्रो ! आज मैं आपके सामने वो तस्वीर प्रस्तुत कर रहा हूँ जो कि अत्यंत शर्मनाक, दुर्भाग्य पूर्ण किन्तु सत्य है । आज फिर एक बार आपको अम्बाजोगई (बीड जिला, महाराष्ट्र) स्थान पर ले चलते है, जहाँ पर स्थित १२ वी शताब्दी की प्राचीन जैन गुफा का अस्तित्व लगभग मिट सा गया है, सरकारी और जैन समाज की लापरवाही ने मिटा दिया है, और आजकल कुछ मूर्ख लोग उसको शौचालय के रूप में उपयोग में ले रहे है । 12 वी शताब्दी के एक महत्वपूर्ण जैन गुफा मंदिर का कुछ अज्ञानी और जघन्य लोग जो पुरातत्व, प्राचीन विरासत से अनभिज्ञ है वह प्राचीन जैन गुफा मंदिर का उपयोग सार्वजनिक मूत्रालय और शौचालय की तरह कर रहे है। जैन धर्मावलम्बियों और पुरातत्व की उपेक्षा की शिकार यह जैन गुफा तेजी से क्षरण का शिकार हो रही है। सम्पूर्ण गुफा का शिल्प और स्थापत्य जयंती नदी में वर्षा काल में बहते हुए जल की वजह से ही क्षरित हो गया है। हमारी विरासत को समाज कंटको के द्वारा अतिक्रमण और परिवर्तन का खतरा है।
हमारी जैन ग्लोरी टीम ने बड़ी मुश्किल से उस गुफा का पता लगाया, और बाद में अपशिष्ट को लगभग रौंदते हुए, नाक और आँखे बंद करके उस गुफा का दौरा किया, क्षरित हुई प्रभु की मूर्तियों के दर्शन किये और साक्ष्य के लिए कुछ फोटो खींचे । बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि स्थानीय जैन समाज ने पूरी तरह से आँखे मूँद ली है और हमारे बार बार पूछने पर भी गुफा के बारे में नहीं बताया, शायद उन्हें उनके सम्मान के नष्ट होने का खतरा था या फिर वे जानते थे इस सत्यता को किन्तु दूसरो के समक्ष प्रस्तुत नहीं होने देना चाहते थे । मैं चाहूंगा की हम सभी लोग अम्बेजोगई के विधायक, सांसद, पुरातत्व विभाग और जैन समाज पर इस स्थान की सुरक्षा, व्यवस्था, सफाई के लिए दबाव डाले । यदि इस पोस्ट को पढने और फोटो को देखने के बाद भी हम नहीं जागते है तो और भी अधिक दुर्भाग्य पूर्ण होगा ।आइये इस प्राचीन जैन गुफा मंदिर के प्राचीन जैन इतिहास के बारे में जानते है और इस जैन गुफा के संरक्षण के लिए जो किया जा सकता है उसे कार्यान्वित करते है।
अम्बाजोगई जैन गुफा मंदिर :- अम्बाजोगई नगर में एक प्राचीन यादव कालीन प्रतिमाओं से युक्त जैन मंदिर है जिसका वर्णन हम पिछले लेख में कर चुके है और आप सभी इस लेख को https://www.facebook.com/jainglory पर पढ़ सकते है। अम्बाजोगई जैन गुफा मंदिर जयंती नदी के तट पर स्थित है और यह नदी अम्बाजोगई नगर के बीच से गुजरते हुए इस नगर को दो भागो में विभक्त करती है। इस जयंती नदी के किनारे पर कई प्राचीन जैन-हिन्दू मंदिर और स्मारक बने हुए है जो की इस नदी की प्राचीनता और इस नगर की सभ्यता विकास की तरफ इंगित करते है। आज यह जयंती नदी सिर्फ एक नाले के रूप में रह गयी है वर्षाकाल में इस नदी में पर्याप्त पानी रहता है।
प्रसिद्द हाथीखाना गुफा मंदिर जो कि हिन्दू धर्म से सम्बंधित है और 1066 ईस्वी सं में परमार या राष्ट्रकूट शासक महामंडलेश्वर उदयादित्य के द्वारा निर्मित है इस जैन गुफा मंदिर से मात्र 200 मीटर की दूरी पर नदी के दुसरे छोर पर स्थित है और साथ ही प्रसिद्ध योगेश्वरी मंदिर से केवल आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जैन गुफा एक पहाड़ी के ढलान में समतल चट्टान में खोदी गयी है और इसके वास्तु में सभामंडप और पक्ष मंडप का विशेष उल्लेख करना अत्यंत आवश्यक है। इस गुफा मंदिर के प्रवेश में बनी हुई कुछ सीढ़ियों को उतरने के बाद दो गज हमारा स्वागत करते है। यधपि यह गज हाथीखाना में स्थित अन्य गज प्रतिमाओ की तरह विशाल नहीं है परन्तु इनकी उपस्थिति इस जैन गुफा मंदिर के हाथीखाना गुफा के समकालीन होने की ओर इंगित करती है।
इस गुफा मंदिर के पूर्व दिशा में एक सभा मंडप बना हुआ है जो की तीन प्राचीन गर्भगृहों से युक्त है और यह गर्भगृह उत्तर और दक्षिण पक्ष मंडपों में स्थित है। इस सभा मंडप को सहारा देने के लिए ही चट्टान में ही खोद कर खम्भे बनाये हुए है। इस सभा मंडप के सामने एक खुले अंतराल में एक मानस्तम्भ की रचना थी जो की अब इस गुफा में विद्यमान नहीं है संभवतः यह मानस्तम्भ अब नगर में स्थित जैन मंदिर में विराजमान है। इस मान स्तम्भ की जगह केवल एक गोल संरचना रह गयी है जो कि यहाँ एक मान स्तम्भ होने की साक्षी है।
सभा मंडप के मध्य में स्थित प्राचीन गर्भगृह में 23 वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ स्वामी की पद्मासन अवस्था में सिंह आसन पर विराजमान प्रतिमा है। इन प्रतिमाओं के आसान पर सिंहो का अंकन इसे जैन धर्म से सम्बंधित करती है क्योंकि बुद्ध के आसन में सिंहों का अंकन नहीं होता है और उसकी जगह हिरण का अंकन देखने को मिलता है। यद्यपि इस प्रतिमा के दोनों और चंवर धारक उत्कीर्ण है और नाग फन जो की मस्तक के ऊपर उत्कीर्ण होते है वह आज मिट चुके है और प्रतिमा के क्षरण की वजह से इन्हे पहचान पाना भी काफी कठिन है। कई विद्वानो ने इस प्रतिमा को महावीर स्वामी माना है परन्तु काफी नजदीक से विश्लेषण करने पर यह प्रतिमा पार्श्वनाथ स्वामी की पायी गई है।
इस गर्भ गृह के बाहर और द्वार के दोनों ओर दो खड्गासन जैन प्रतिमाओं का अंकन है जिन्हे कई विद्वानो ने त्रुटिवश द्वारपाल समझ लिया जबकि यह लगभग ५ फ़ीट की दो कायोत्सर्ग ध्यानरत जैन तीर्थंकर प्रतिमाएं है। इस मुख्य गर्भ गृह के अलावा इस सभा मंडप के दक्षिण भाग में एक अन्य गर्भगृह विद्यमान है जो कि एक पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा से युक्त है। यधपि इस जैन प्रतिमा को भी पहचान पाना कठिन है परन्तु इस जैन प्रतिमा के पार्श्वनाथ स्वामी होने की पुष्टि कई विद्वानो ने की है। यह प्रतिमा भी पद्मासन ध्यानरत अवस्था में सिंह आसान पर विराज मान है। इस गर्भ गृह के बहार की दीवार पर प्राचीन जैन तीर्थंकर की 24 छोटी जैन प्रतिमाएं उत्कीर्ण है। यह प्रतिमाएं तीन पंक्तियों में बनायीं गयी है जिसमे से तीसरी पंक्ति लगभग मिट चुकी है।
इस सभा मंडप के वाम भाग में उत्तर पक्ष मंडप में एक गर्भ गृह विद्यमान है जिसमे भी एक तीर्थंकर प्रतिमा पद्मासन ध्यानरत अवस्था में सिंह आसन पर विराजमान है। विद्वानो ने इस प्रतिमा की भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा माना है। इस सभा मंडप के बाहर गुफा के उत्तरी भाग में एक और कक्ष स्थित है जिसमे भी एक पद्मासन ध्यानरत जैन तीर्थंकर प्रतिमा विराज मान है। यह जैन प्रतिमा अन्य प्रतिमाओं की तरह सिंह आसान पर पद्मासन अवस्था में ध्यानरत है। यह कक्ष जयंती नदी के वर्षा काल में प्रवाहित जल से भरा हुआ है। इस कक्ष के ठीक विपरीत दिशा में सामने की तरफ अन्य गुफाएं बनी हुई है जो की खाली है और सम्भवतः जैन यतियों के लिए निवास स्थान हो।
अम्बाजोगई जैन गुफा मंदिर का इतिहास :- यद्यपि इस जैन गुफा मंदिर में कोई भी शिला लेख इसके निर्माण और जीर्णोद्धार के सम्बन्ध में प्राप्त नहीं हुए है परन्तु नजदीक स्थित हाथीखाना हिन्दू गुफा मंदिर में एक 11 वी शताब्दी का १०६६ ईस्वी का शिलालेख प्राप्त हुआ है। यह शिलालेख महामंडलेश्वर उदयादित्य के शासन काल है जिसने मालवा से १०६० से १०८७ ईस्वी तक राज्य किया। यह उदयादित्य या तो परमार वंशी या राष्ट्रकूट राजा था जिसने मालवा से मराठवाड़ा तक अपने शासन को फैला रखा था। अतःएव शिल्प, कला और वास्तु की साम्यता के आधार पर हम यह अनुमान लगा सकते है की यह जैन गुफा मंदिर भी महामंडलेश्वर उदयादित्य के समकालीन अर्थात 11 वी शताब्दी स सम्बंधित होना चाहिए। यद्यपि अम्बाजोगई नगर को सर्वोच्च स्थान, प्रसिद्धि और चमक यादव शासकों के समय में मिली जो की 12 वि शताब्दी से ही स्वतंत्रता पूर्वक इस क्षेत्र में शासन कर रहे थे परन्तु जैन धर्म की जड़े इस क्षेत्र में पहले से ही काफी गहरी है। फिर भी मध्यकाल में जैत्रपाल जैसे यादव शासकों ने इस अम्बाजोगई क्षेत्र में जैन धर्म की उन्नति में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अंत में, मैं चाहूंगा की हम सभी लोग अम्बेजोगई के विधायक, सांसद, पुरातत्व विभाग और जैन समाज पर इस स्थान की सुरक्षा, व्यवस्था, सफाई के लिए दबाव डाले । यदि इस पोस्ट को पढने और फोटो को देखने के बाद भी हम नहीं जागते है तो और भी अधिक दुर्भाग्य पूर्ण होगा ।
Jai Jinendra to All. Today, I am presenting a shameful, unfortunate but true picture of our carelessness. Let’s move to Ambajogai (District – Beed, MH) place again via this post, where ancient (12th century) Jain cave is situated but its existence is almost decayed. The 12th century’s ancient cave has been being used as a public toilet and lavatory by heinous people. Our heritage has been encroached, converted and appropriated by anti-social people. Ignorant people who do not have knowledge of Archaeology, ancient heritage and Jainism made our ancient Jain cave temple a public lavatory and toilet.
Ancient Ambajogai Jain caves are in grave danger and vulnerable to conversion by encroachers. Please read the great glorious history of this cave and decide that what actions should be taken to preserve ancient heritage. Due to negligence and lack of proper care by Jain community and Archaeological Survey of India, The cave is falling to decay very rapidly. The whole cave structure is somewhat obliterated by deterioration due to continuous flowing water in river Jayanti in rainy season time.
Our JainGlory team had reached at the cave after a long search of the cave. We almost made dirty ourselves to visit the cave. Although, our noses had to close – but we became emotional to see such shameful condition of the ancient cave. We clicked some photographs for proofs and shown respect to the creator of the cave and bow to the decayed, carved images of Jina. The most unfortunate thing was- none of Jains had told us about the cave and the way to reach there even after asking again and again. Probably they knew the facts and they were supposed to expose in front of all.
I would like to tell all people that we have to pressurize MLA, MP, ASI and Jain Society of Ambajogai regarding safety, cleaning, and arrangements of the ancient Jain Cave.Let’s read about the cave and its history in detail.
Ambajogai Jain cave: - Ambajogai town has a great ancient Jain temple which has been detailed in our previous post to https://www.facebook.com/jainglory . Ambajogai Jain cave is situated at the bank of river Jayanti which passes through heart of the ancient city Ambajogai. Today River Jayanti is in the form of a canal which has very few meters breadth and the river cuts the town in two halves and its bank is abode of several temples, caves and ancient monuments concerned to different creeds. Brahamanical and Jain monuments are situated in vicinity of the town Ambajogai.
The famous Hathikhana caves which is concerned to Brahmanical creed and consecrated by Rashtrakoota or Parmara sovereign Udayaditya of 1066 AD. The Jain cave is situated to about half kilometer to Yogeshwari temple and about 200 meter apart from Hathikhana caves on opposite bank of river Jayanti. The Jain cave is constructed in plain hill feature and its interior is consisted by Sabhamandapa and Pakshamandapa. As we enter the cave temple we are welcome by two Elephants structure which are comparatively smaller than Hathikhana cave’s elephants.
The eastern side of the structure contains a spacious Sabhamandapa which was used for assembly in Jain temple anciently. The cave contains two pakshamandaps wiz north and south pakshamandapa. The interior of the cave contains pillared structure which is purely rock cut and carved out in the hill itself. In the Sabhamandapa there are three inner shrines which accommodate the ancient Jina sculptures along with Pratiharya. The middle inner shrine is dedicated to 23rd Lord Parshwanatha which is attended by two whisk bearers. The Jina is delineated in meditation posture and seated on a Lion throne. The cobra hood is so obliterated that it is beyond recognition to Jina Parshwantha. The whole image is too hard to identify due to continuous deterioration. On the either side of the gate to this inner shrine, there are two Jina sculptures of 5 feet height depicted in kayotsarga posture. The faces of these sculptures are also defaced and obliterated.
On the right side of this inner shrine; in the south Pakshamandapa there is a cell which contains a Teerthankara sculpture in Padamasna posture on a Lion seat. The Jina savior’s sculpture is attended by whisk bearers on either side. This image is also much defaced and obliterated. Scholars claimed this sculpture as Jina sculpture of Parshwanatha. On the right wall of the cave; in the south pakshamandapa there are 24 teerthankara carved in three rows which all are in meditation posture. Third row of these sculptures is obliterated and now hard to trace.
In the north Pakshamandapa there is a cell which contains Jina sculpture of teerthankara which is speculated as Rishabhanath delineated in meditation posture seated on Lion seat. This sculpture is also much defaced and obliterated. Outside the Sabhamandapa, there is a cell which is situated at left side of cave structure in open courtyard. The cell also contains a Jain sculpture in padmasana posture meditating and seated on lion throne. This cell is filled with water flowing from Jayanti River during rainy season. On the opposite side of this cell there is also one other cell which is vacant and perhaps was abode of Jaina ascetics in ancient time. In the middle of the cave there is a place which holds the Maanstambh but alas!!! The Maanstambh is not present today and perhaps it was transported to the city’s Jain temple.
History of Ambajogai Jain Cave: - As there is no inscription found in the Jain cave governing the construction time of the cave but an Inscription is found near in the Hattikhana Brahmanical cave attesting that the caves were consecrated in 1066 AD by Mahamandaleswara Sovereign Udayaditya who reigned to 1060-1087 AD. Thus we can speculate on the basis of artistic similarities, architecture and craft that the Jain caves were constructed in the same period of Mahamandaleshwara King Udayaditya. Although Ambajogai town found its supreme position, fame and glory under reign of Yadavas like Jaitrapala in 12th century but Jainism had been already deep rooted in this region. The city of Ambajogai got several Jain sovereigns during medieval period which contributed to Jainism in a great way.
Finally, I would like to tell all people that we have to pressurize MLA, MP, ASI and Jain Society of Ambajogai regarding safety, cleaning, and arrangements of the ancient Jain Cave. Even after reading this post we do not wake up, it would be more unfortunate. In that case, we all would be responsible of destroying our own heritage.