The picture shown is of one of the earliest Jain Ambika depicted anywhere in India. This sculpture is hailed from Aihole’s Meguti Jain temple. Prior to this image, Jain yakshi Ambika is depicted at Akota in Gujarat state and Badami jain cave no. 4 in Bagalkot district of Karnataka State. The yakshi image of Ambika from Meguti Jain temple is believed to be carved during Early Chalukya period of. Date of sculpture goddess Ambika could be fixed around 634 AD during reign of great Chalukya monarch Pulakesi II. According to Scholar and historian Maruti Nandan Prasad Tiwari this image is beautifully carved and refined as compared to Badami’s Ambika sculpture. Generally Ambika was depicted with two hands prior to 8th Century AD. Her association with savior Neminatha is not restricted till 8 century AD. She was not associated with Neminath but also with Rishabhnath, Parshwanath and other saviors in Akota, Dhank and many other places. Aihole Ambika Yakshi image was originally installed at Meguti Jain temple. Now this image is preserved at Aihole’s Local museum. The two armed Yakshi Ambika is gracefully seated on her mount Lion. Her both arms are damaged but it could be easily deduced that her palm is in rest position to a raised pedestal. Her gesture is graceful and body is perfectly toned and molded. She contains a long crown or “Mukuta” on her head which is minutely carved and decorated and a perfect specimen of Chalukya Art. Her ornaments are minutely carved specially griddle is very beautiful. She has background created by Chamardhara “Whisk Bearer”, branches of Mango tree, peacock and monkey. Both of her sons are depicted but not as usual in her lap. One child is hold by an attendant on right side of yakshi Ambika and another child is standing near a female attendant containing lotus depicted on left side of Yakshi Ambika. Another female attendant is depicted with lotus and Flywhisk चित्र में प्रदर्शित यक्षी प्रतिमा जैन देवी अम्बिका की है जो भारत में सर्वाधिक प्राचीन जैन यक्षी अम्बिका की प्रतिमाओं में से एक है। यह प्रतिमा ऐहोले के मेगुती जैन मंदिर से ध्वस्त भग्नावशेष से प्राप्त हुई है। इस से पूर्व की जैन अम्बिका यक्षी की प्रतिमा गुजरात में वड़ोदरा के निकट अकोटा, ढाँक गुफा और बागलकोट जिले के बादामी की जैन गुफा से प्राप्त हुई है। मेगुती जैन मंदिर से प्राप्त यक्षी प्रतिमा प्रारंभिक चालुक्य कला का अनुपम उदाहरण है। शिलालेख से पुष्ठ साक्ष्यों के आधार पर इस प्रतिमा का निर्माण काल 7 वी शताब्दी ईस्वी में माना गया है। कुछ विद्वानो के अनुसार इस मंदिर और प्रतिमा का निर्माण प्रतापी राजा पुलकेशी द्वितीय के राज्य काल में 634 ईस्वी में हुआ था। विद्वान और इतिहासकार मारुती नंदन प्रसाद तिवारी के अनुसार यह यक्षी प्रतिमा सुगढ़ है और इसे बादामी के जैन गुफा से प्राप्त यक्षी अम्बिका की तुलना में कलात्मकता से गढ़ा गया है। 8 वी शताब्दी से पूर्व की यक्षी अम्बिका की प्रतिमाएं दो हाथों के साथ निरूपित की गयी है और इनका निरूपण केवल तीर्थंकर नेमीनाथ के साथ 8 वी शताब्दी तक तय नहीं किया गया था। अकोटा , ढांक, मथुरा आदि स्थानों पर यक्षी अम्बिका को तीर्थंकर ऋषभ ,पार्श्वनाथ और अन्य तीर्थंकरों के साथ भी निरूपित किया गया है। ऐहोले से प्राप्त जैन यक्षी अम्बिका की प्रतिमा मेगुती जैन मंदिर में स्थापित थी जो कि वर्त्तमान में ऐहोले के स्थानीय संग्रहालय में सुरक्षित है। द्विभुजा यक्षी अम्बिका का निरूपण सिंह की सवारी के साथ मनोहारी रूप में किया गया है। यक्षी अम्बिका की दोनों भुजाएं खंडित है परन्तु इस बात का अनुमान स्वतः लगता है कि यक्षी की कलाई एक ऊँचे तल तक विद्यमान है. यक्षी की भाव भंगिमा मनोहारी और आकर्षक है। यक्षी की शारीरिक बनावट सुगढ़ और सुन्दर प्रतीत होती है। यक्षी के सिर पर एक ऊँचा मुकुट अवस्थित है जो कि पर्याप्त कलात्मक प्रतीत होता है। यक्षी के आभरण और आभूषण आदि भी काफी कलात्मक उकेरे गए है और प्रारंभिक चालुक्य कला का उत्कृष्ठ नमूना बन पड़ा है. देवी अम्बिका के पार्श्व में एक चमरधारी को उकेरा गया है साथ ही पार्श्व आम्र लताओं, मयूर, वानर आदि से परिपूर्ण है. देवी अम्बिका के दोनों पुत्रों का निरूपण भी इस प्रतिमा में किया गया है परन्तु दोनों बालक उसकी गोद में नहीं दर्शाये गए बल्कि एक शिशु को सेविका ने अपने हाथो में उठा रखा है जो कि यक्षी के दक्षिण भाग में निरूपित है. इसी तरह अन्य बालक यक्षी के वाम भाग में दर्शायी सेविका के पास खड़ा है. एक अन्य सेविका के हाथ में कमल पुष्प और चँवर है। |
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