आधुनिक कर्नाटक राज्य के उत्तर पूर्व क्षेत्र में 10- 13 वी शताब्दी तक कल्याणी के चालुक्य शासकों का शासन रहा। जिनके संरक्षण और भक्ति से जैन धर्म का इस क्षेत्र में काफी प्रचार प्रसार हुआ। आधुनिक कर्नाटक के यद्गिर , बीदर और गुलबर्गा जिले उस समय कल्याणी के चालुक्यों के अंतर्गत आते थे। कल्याणी के चालुक्यों की राजधानी कल्याणी थी जो आज बासव कल्याण के नाम से जानी जाती है यह स्थान कर्नाटक राज्य में स्थित है। जैन धर्म का सर्वाधिक प्रचार प्रसार त्रिभुवनमल्ला विक्रमादित्य -6 के शासन काल में हुआ। विक्रमादित्य-6 के कुछ मंत्री, सामंत और सेनापति जैन धर्म के परम भक्त थे और इन के साथ ही विक्रमादित्य -6 ने जैन धर्म को सहयोग और संरक्षण दिया। विक्रमादित्य -6 ने 1076 से 1126 ईस्वी तक शासन किया जो अपेक्षाकृत अन्य शासकों के मुकाबले अधिक था इस वजह से सर्वाधिक शिला लेख इनके ही काल के प्राप्त हुए है। कमठाण :-कमठाण एक प्राचीन जैन तीर्थ क्षेत्र है जो कि कर्नाटक राज्य के बीदर जिले में स्थित है। यह तीर्थ क्षेत्र कमठाण जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान हुमनाबाद से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पूर्व दिशा में स्थित है जबकि ज़हीराबाद से 47 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पश्चिम दिशा में स्थित है। कमठाण २३ वे जैन तीर्थंकर भगवन पार्श्वनाथ की प्राचीन श्याम वर्ण प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है। मुख्य जैन मंदिर लगभग 1.5 एकड़ के परिसर क्षेत्र में स्थित है। इस परिसर के दो दरवाजे है जो कि दक्षिण और पूर्व दिशा में विद्यमान है। इस मंदिर के मुख्य प्रवेश द्धार के सामने लगभग 35 फ़ीट उतुंग मानस्तम्भ है। मंदिर में प्रवेश के बाद एक बरामदा आता है जिसके अंदर से 4-5 सीढ़ियां मुख्य गर्भ गृह तक ले जाती है। मुख्य गर्भ गृह में प्रदिक्षणा पथ विध्यमान है जो के मुख्य वेदी के चारों तरफ स्थित है। भगवान पार्श्वनाथ की प्राचीन प्रतिमा पूर्व में मंदिर के तलघर में विराजमान थी जहाँ से ईस्वी सन 1989 में वर्तमान वेदी में विराजमान की गयी थी। पार्श्वनाथ प्रतिमा :- पार्श्वनाथ प्रतिमा काले पाषाण में निर्मित होकर लगभग 11 वि शताब्दी की है। यह प्रतिमा पद्मासन अवस्था में विराजमान है और प्रतिमा की ऊंचाई लगभग 4.5 फ़ीट है। प्रतिमा अत्यंत मनोहारी है जिसके मुख पर पवित्रता और शांति स्पष्ट परिलक्षित होती है। इस प्रतिमा के चारों तरफ कांच का सजावटी कार्य किया गया है और अष्ट प्रतिहार्य का निरूपण स्वर्ण सदृश धातु से किया गया है। मुख्य मंदिर के अलावा इस तीर्थ क्षेत्र पर तीन आचार्यों की चरण छतरियां भी है जो कि मुख्य मंदिर के पास स्थित बगीचे में स्थित है। मुख्य मंदिर के शिखर में भी एक वेदी स्थित है जिस पर मनोहारी कांच का कार्य करवाया गया है और पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान है। Jainism flourished in north eastern Karnataka during reign of Chalukya of Kalyani during 10th to 13th century AD. Modern Gulbarga, Yadgir and Bidar districts were once under sovereignty of Chalukya of Kalyani. Ancient Kalyani city was capital of Chalukyas and in modern time the place is known as Basav Kalyan. Jainism flourished under reign of Tribhuvnmalla Vikramaditya VI greatly. He was also supporter of Jainism and some of his feudatories, ministers and chieftains were ardent follower of Jainism. He reigned from 1076 to 1126 AD which is a vast time span therefore most of inscriptions are hailed from his era. Kamthan :- The place named Kamthan is a very ancient pilgrimage center in Bidar district of Karnataka state. The pilgrimage is situated about 10 Kilometers from Bidar district headquarter. In other words we can say that it is situated at suburb of Bidar which is named as Kamthana. Kamthana is situated about 45 Kilometers from Humnabaad in north-east direction where it is about 47 kilometers from Zaheerabad in north-west direction. Kamthan is renowned for 11th century image of 23rd lord Parshwanatha. The main temple is situated in a premise of about 1.5 acre. The premise of the temple has two gates in south and east direction. The temple has a Maanstambh of about 35 feet in front of main entrance to the temple. After entrance to the main temple a porch is there and the 4-5 flying stairs leads us to the main Garbhabriha. Garbhagriha has pradikkshna-path around the main vedi of temple. The image of Lord Parshwanatha was situated earlier in basement type structure but in 1989 AD the image of Parshwanatha was installed on new vedi at upper floor. Parshwantha image :- The image of Lord Parshwanatha is sculpted in black stone and belongs to 11th century AD. The height of image is about 4.5 feet and it is depicted meditating in Padmasana posture. The sculpture of Jina is very mesmeric and has expressions of serenity and tranquility on face. The main vedi is decorated with golden and glass work. Astha-pratiharya of Jina is carved in a metal which renders a feeling of golden work. Besides this main temple there are three Charan Chatri of librated Acharyas in garden. A vedi is also there in shikhra on top floor of the main temple. This vedi contains good glass work and an image of lord Parshwantha. The temple has an assembly hall of capacity of 200 on the name of Acharya Shri 108 Shrut Sagar ji and a memorial hall on the name of Acharya Shri 108 Aryanandi. The temple has good boarding facility for pilgrims and there are two borewell and a conventional well for water supply to temple and pilgrims. Jain Acharyas, munis and pilgrims often visit to this place and the place is considered very sacred in pilgrims especially from Karnataka, Telangana, Andhra and Maharashtra. Every year on an auspicious day a fair is organized and pilgrims visit in mass. |
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