जैन धर्म का वर्चस्व चालुक्य और राष्ट्रकूट शासकों के शासन काल में अपने चरम पर था और इन शासकों के संरक्षण के परिणाम स्वरुप आधुनिक कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र राज्यों में कई स्मारकों, प्रतिमाओं और मंदिरों का निर्माण हुआ। विद्धानों और इतिहासकारों के अनुसार आधुनिक लातूर शहर राष्ट्रकूट राजाओं का उद्गम स्थल रहा है और यह तथ्य कई शिलालेखों और प्रमाणों के आधार पर पुष्ठ है। समय के साथ साथ राष्ट्रकूट शासकों ने अपनी राजधानी को कई स्थानों पर स्थानांतरित किया परन्तु दक्षिणी महाराष्ट्र,उत्तर पूर्व कर्नाटक और पश्चिमी आंध्र पर इन शासकों की मज़बूत पकड़ रही। कल्याणी के चालुक्य शासकों ने भी इस क्षेत्र पर शासन किया जहाँ उनके शासनकाल ने कई शानदार मंदिरों, प्रतिमाओं और स्मारकों का उपहार दिया है। उनके राज्य की राजधानी कल्याणी थी जो आज बासव कल्याण के नाम से जाना जाता है और कर्नाटक राज्य में स्थित है। मुद्गड रामलिंग :- मुद्गड रामलिंग नामक स्थान महाराष्ट्र राज्य के लातूर जिले में स्थित है। यह स्थान लातूर जिला मुख्यालय से करीब 67 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा में स्थित है और उस्मानाबाद जिला मुख्यालय से लगभग 110 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण पूर्व दिशा में स्थित है। इस स्थान पर कई प्राचीन जैन अवशेष शिलालेख और खंडित प्रतिमाओं के रूप में देखे जा सकते है। वर्तमान में इस ग्राम में एक छोटा सा जैन मंदिर है जो कि नई चाकुर और कासार सिरसी को जोड़ने वाली सड़क के पास में स्थित है। इस ग्राम में स्थित जैन मंदिर 23 वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान को समर्पित है। तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा लगभग 5 फ़ीट की कायोत्सर्ग अवस्था में विराजमान है और काले पाषाण से निर्मित है। भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा अत्यंत मनोहारी है और नाग फन जिन प्रतिमा के मस्तक पर दर्शाया गया है और नाग कुंडली भगवान के पार्श्व में दर्शायी गयी है। एक पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा और पार्श्व तीर्थंकर की खड्गासन कायोत्सर्ग प्रतिमा खंडित अवस्था में मंदिर के प्रांगण में रखी हुई है। इस ग्राम में जैन समाज का एक भी घर नहीं है और पूजा पाठ - अभिषेक आदि क्रिया के लिए पास स्थित ग्राम कासार सिरसी से पुजारी आता है। जैन मंदिर की चाबी पास स्थित मकान पर रहती है। जैन मंदिर का जीर्णोद्धार और पार्श्व तीर्थंकर की प्रतिमा की मूलनायक के रूप में स्थापना कुछ वर्ष पूर्व अखिल भारतीय दिगम्बर जैन महासभा की सहायता से की गयी थी । इस ग्राम के आस पास नई चाकुर और कासार सिरसी जैसे तीर्थ भी स्थित है। Jainism was prominent religion during the reign of Rastrakootas and Chalukya sovereigns and patronization by these emperors rendered some great monuments, sculptures and pantheons.Modern Latur city was native and original place of Rastrakootas sovereigns according to several scholars and the fact is corroborated and attested by several paleographic and inscriptional evidences. As time passed, Rastrakoota emperors shifted their capitals from place to place but modern southern Maharashtra, North East Karnataka and Western Andhra was stronghold of Rastrakootas. Chalukyas of Kalyani also governed this area and contributed to some great Monuments, Sculptures and Pantheons. The capital of this empire is known as “Basav Kalyan” today situated in Modern Karnataka State. Mudgad Ramling: - The place named as Mudgad Ramling is situated in Latur district of Maharashtra state. The place is about 67 Kilometers from Latur district headquarter and 110 Kilometers from Osmanabad district headquarter in South East direction. The place has some ancient Jain vestiges along with some mutilated Jain sculptures and inscription slabs. Now a day, there is a small Jain temple situated besides a road passing through the village from Nai chakur to Kasar Sirsi. The small Jain temple is dedicated to 23rd Lord Parshwanatha containing some ancient mutilated Jain sculptures and Inscriptions slabs. The sculpture of Savior Parshwanatha has height of about 5 feet sculpted in black stone. The image of Jina is mesmeric and meditating in Kayotsarga posture. Cobra hoods are depicted over the head and coiled behind the Jina. A Teerthankar sculpture in padmasan posture and Kayotsarga sculpture of Parshwanatha are in mutilated state and kept in compound of Jain temple. There is not even a single Jain community home in the village and worship is performed by a pontiff from nearby Village Kasar Sirsi. The Jain temple was renovated and present principal deity of parshwantha was also preserved by Akhil Bharteeya Digamber Jain Mahasabha some years ago. The place has some nearby pilgrimages like Nai Chakur and Kasar Sirsi. Inscriptions: - An inscription of 12th century AD was found from this place on a slab lied in the temple compound. The inscription was written in Kannada language. The inscription has documentation about Abhaynandi Bhattarak and Nishdhika of Diwakarnandi Siddhantadeva on two faces of cubical slab. On third face of the inscription slab there is documentation of several preachers of Kondakundanvaya. |
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