यद्यपि जैन धर्म को राष्ट्रकूट शासकों ने संरक्षण प्रदान किया और पालन किया तथापि जैन धर्म का प्रभाव एक राज्य वंश तक सीमित नहीं रहा। जैन धर्म का प्रभाव उत्तरी पूर्वी कर्नाटक क्षेत्र मध्यकालीन शताब्दियों में आम जन में पर्याप्त गहराई तक पैठा हुआ था। कल्याणी के चालुक्य, सिलहार और गंगा शासकों ने मध्यकालीन कर्नाटक में प्राचीन जैन मंदिरों का जीर्णोद्धार, नव मंदिरों का निर्माण, जैन कवियों और लेखकों को राज्य संरक्षण और जैन मंदिरों को दान देने जैसे कार्य प्रचुरता से किये। ऐसे ही प्राचीन जैन मंदिर जिनको कल्याण चालुक्यों और राष्ट्रकूट शासकों ने बनवाया वे मंदिर आज भी कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्य के बीदर, गुलबर्गा, यद्गिर, बेल्लारी , उस्मानाबाद और लातूर जिलों में विद्यमान है और प्राचीन जैन धर्म की गौरव गाथा का वर्णन कर रहे है। प्राचीन जैन शिलालेखों और साहित्यिक प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध होता है के गुलबर्गा का क्षेत्र 8 वी से 13 वी शताब्दी तक प्राचीन जैन धर्म का केंद्र था। सेडम :- सेडम कर्नाटक राज्य के गुलबर्गा जिले में स्थित है। यह स्थान मलखेड(मान्यखेट) कस्बे से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में स्थित है साथ ही गुलबर्गा जिला मुख्यालय से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिणी पूर्वी दिशा में स्थित है। यद्यपि सेडम प्राचीन मान्यखेत (मलखेड ) जो कि राष्ट्रकूट राजाओं की राजधानी थी वहाँ से अधिक दूर नहीं है परन्तु सेडम कसबे से प्राचीन राष्ट्रकूट कालीन अवशेष और स्मारक नहीं के बराबर है। संभवतः इस सम्बन्ध में अधिक शोध की आवश्यकता है। अधिकतर स्मारक ,अवशेष और सामग्री जो इस स्थान से प्राप्त हुई है वह कल्याणी चालुक्य कालीन है। सेडम के जैन मंदिर :- साहित्य और शिलालेख प्रमाणों के आधार पर सेडम में तीन जैन मंदिर है जहाँ दो जैन मंदिर सेटियर ओनी और एक मंदिर पॉटर कॉलोनी में स्थित है। ये जैन मदिर लगभग 11-12 वि शताब्दी ईस्वी से सम्बंधित है। सेटियर ओनी का आशय व्यापारियोंके आवास से है जो की कन्नड़ शब्द है। प्रारम्भ में यह जैन मंदिर काफी बुरी अवस्था में थे और आस पड़ौस के लोगो के द्वारा इन चालुक्य कालीन जैन मंदिरों का उपयोग पशुओं को बाँधने,चारे के भंडार,उपलों को सूखने और शौचालय की तरह किया जाता था। इस बात को लेखक पी. बी. देसाई ने अपनी पुस्तक "जैनिज़्म इन साउथ इंडिया एंड सम जैन एपिग्राफस " में भी किया है। सेडम का जैन मंदिर काफी तंग गलियों में स्थित है और चालुक्य कला का महत्वपूर्ण नमूना है। सेडम के जैन मंदिर में मूलनायक प्रतिमा पार्श्वनाथ भगवान की है जो कि कल्याण चालुक्य कालीन प्रतिमा प्रतीत होती है। जैन मंदिर का प्रवेश द्वार किसी आम घर की तरह ही प्रतीत होता है और जैन मंदिर की स्थिति अच्छी नहीं है। जैन मंदिर प्रांगण में प्रवेश करते ही अर्ध मंडप दिखाई देता है और इस अर्ध मंडप में दरवाजे के दोनों और प्राचीन कन्नड़ भाषा में उत्कीर्ण शिलालेख है। इस शिलालेख से चालुक्य शासन, जैन भट्टारक,आचार्यों और तत्कालीन परिस्थतियों पर प्रकाश पड़ता है। मंदिर में प्रवेश करते ही सामने गर्भ गृह दिखाई देता है जिसमे मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान है। गर्भगृह में स्थित मूलनायक प्रतिमा भगवान पार्श्वनाथ की है खड्गासन अवस्था में विराजमान है। यह प्रतिमा लगभग 3 से 3.5 फ़ीट की ऊंचाई की होकर काले पाषाण में निर्मित है। इस मूलनायक प्रतिमा में अष्ट प्रतिहारों का निरूपण किया गया है। मस्तक पर तीन छत्र , सर्प फणवली और यक्ष यक्षणी का निरूपण इस प्रतिमा को आकर्षक बनाती है। गर्भगृह के प्रवेश द्वार के सरदल में तीर्थंकर प्रतिमा का निरूपण किया गया है। इस द्वार पर यक्ष यक्षिणी, सहायक देवी देवताओं का निरूपण किया गया है। मंदिर के अंतराल में काफी चालुक्य कालीन खम्बों का निरूपण किया गया है। मंदिर में मूलनायक प्रतिमा के अलावा एक खड्गासन तीर्थंकर प्रतिमा, चालुक्याकालीन पद्मासन तीर्थंकर पार्श्वनाथ प्रतिमाएं और यक्षिणी प्रतिमाएं दर्शनीय है। इस मंदिर में दो यक्षिणी प्रतिमाएं भी विराजमान है जो की सम्भवतः यक्षिणी ज्वालामालिनी और अम्बिका की है। यह दोनों प्रतिमाएं त्रिभंग अवस्था में विध्यमान है। इसमें से एक यक्षी प्रतिमा द्धि भुजा और एक प्रतिमा चतुर्भुजा है। यह दोनों ही प्रतिमाएं चालुक्यकालीन है। सेडम के शिलालेख :- सेडम का प्राचीन नाम सेडिम्बा था और इस तथ्य की प्रमाणिकता यहाँ से प्राप्त शिलालेखों के आधार पर होती है। इस स्थान से लगभग 6 शिलालेख प्राप्त हुए है जिन पर सर्वप्रथम प्रकाश पी. बी. देसाई द्वारा लिखित पुस्तक "जैनिज़्म इन साउथ इंडिया एंड सम जैन एपिग्राफस " में डाला गया है। उनकी इस पुस्तक में इन शिलालेखों पर विस्तृत रूप से चर्चा की गयी है और तत्कालीन कला, रिवाज , पूजा पद्धति , इतिहास और चालुक्य शासन पर प्रकाश डाला गया है। सेट्टियार ओनी में स्थित जैन मंदिर से प्राप्त शिलालेख से "लोक जिनालय" के बारे में सूचना प्राप्त होती है। यह "लोक जिनालय" आज अस्तित्व में नहीं है परन्तु इस बात का अनुमान है कि यह जिनालय एक हैहय सामंत लोक के द्वारा बनवाया गया था। इस बात से एक और अनुमान लगता है यहाँ मध्य काल में काफी जैन मंदिर थे जो आज समय के साथ अस्तित्व में नहीं है। सेट्टियार ओनी में स्थित जैन मंदिर के पास स्थित कुएं से कई जैन प्रतिमाएं प्राप्त हुई थी। सेट्टियार ओनी में स्थित जिनालय से प्राप्त एक अन्य शिलालेख में यहाँ के 300 महाजनों का उल्लेख किया है जिनके दान के फलस्वरूप शांतिनाथ जिनालय का निर्माण हुआ और उस मंदिर को ब्रह्मा जिनालय के नाम से जाना जाता था। इस शिलालेख में आचार्य प्रभाचन्द्र त्रिविद्या भट्टारक का उल्लेख भी आया है जो कि वीरपुरा की पवित्र मठ के प्रमुख थे और मडुवा गण से सम्बंधित थे। यध्यपि मडुवा गण के बारे में अधिक जानकारी नहीं है परन्तु यह यापनीय संघ से सम्बंधित है।यह शिलालेख चालुक्य शासक त्रिभुवनमल्ला देवा विक्रमादित्य -6 के काल का है और इस शिलालेख की दिनांक 24 जनवरी 1124 है। एक अन्य शिलालेख जो कि 1138 ईस्वी का है पॉटर कॉलोनी स्थित चालुक्यकालीन जैन मंदिर से प्राप्त हुआ है। यह शिलालेख चालुक्य शासक भूलोकमल्लदेवा सोमेश्वर -3 के समकालीन है। पॉटर कॉलोनी स्थित जैन मंदिर से एक अन्य शिलालेख ईस्वी सं 1158 का प्राप्त हुआ है। यह शिलालेख चालुक्य शासक सोमेश्वर -4 के समकालीन है और सेट्टियार ओनी स्थित जैन मंदिर के शिलालेख से नवीन है। इस शिलालेख से ज्वालामालिनी पंथ के बारे में जानकारी मिलती है। यह पंथ संभवतः मध्यकालीन कर्नाटक में प्रारम्भ हुआ और पूरे कर्नाटक और तमिलनाडु में प्रचलित हुआ। ज्वालामालिनी कल्प स्तोत्र की रचना आचार्य इन्द्रनन्दि ने मलखेड नमक स्थान पर की थी जो की यापनीय संघ से सम्बंधित थे। यक्षिणी ज्वालामालिनी के सम्मुख तांत्रिक क्रियाओं का संपादन किया जाता था। संभवतः जैन धर्म में तांत्रिक क्रियाओं को इसी समय से मान्यता मिली और जल्द ही पूरे कर्नाटक में प्रचलित हो गयी। देवी सेडिम्बा जिसका उल्लेख शिलालेख में आया है और इस कसबे का नामकरण भी जिनके नाम पर हुआ है वह और कोई नहीं वरन यक्षी ज्वालामालिनी है जिन के कानो में स्वर्ण कुण्डल धारण किये गए है। Although Jainism was patronized and followed by Rashtrakoot sovereigns but Jainism was not confined to a particular imperial dynasty. Jainism was popular among laity in North east Karnataka region during medieval centuries. Chalukyas of Kalyani, Silahaars and Gangas also contributed to Jainism by construction, renovation of pantheons of Jina savior, patronization to Jaina poets –authors and endowment to Jaina monasteries. Such ancient Jain sites are visible today in modern Gulbarga, Yadgir, Bedar, Latur, Osmanabaad and Bellary districts of Karnataka and Maharashtra state. It is evident from inscriptions, paleography and literary sources that Gulbarga region was center of Jainism during 8th to 13th century AD. Sedam :- Sedam is situated in Gulbarga district of Karnataka state. Sedam is situated about 15 Kilometers apart in east direction from Malkhed town and about 55 kilometers apart in south east direction from Gulberga district headquarters.Although sedam is not much far from ancient capital of Rashtrakootas but no evidences are available in modern time to relate the place from Rashtrkootas from Jainism point of view. Most of pantheons, sculptures and inscriptional sources are hailed from Kalyani Chalukyan era in sedam. Temples of Sedam :-According to literature there were three temples in the town which are hailed from 11 -12th century AD. Two of these temples were situated at Settiyara oni (Merchants Quarter) and one is situated at potter’s colony. Initially these were in desolate condition and people used the temple as store of cattle fodder and cow dung. Sedam has a temple in the middle of the town in old town; moreover the basadi is a masterpiece of Chalukyan Architecture. The temple is situated in narrow passages of the old town. The temple has principal deity of Lord Parshwanatha which is hailed from Chalukyan Kalyani era. The temple has entrance which resembles to a home entrance and condition of the temple is not up to the mark. Most of artifacts and crafts of ancient temple are used in renovation of the temple. The Temple’s main entrance is flanked by two ancient Kannada Inscriptions which are incised on a big stone slabs. These inscriptions are inscribed in archaic Kannada and written about in 70 lines in the eulogy of Jina , pontiffs, Preachers and Chalukya sovereigns.The temple entrance leads us to porch which contains garbhagriha and several vedis containing Jina sculptures. The principal deity is Lord Parshwanatha which is delineated in Kayotsarga posture has about height of about 3 to 3.5 feet sculpted in Black stone. The principal deity is a masterpiece of Chalukyan art containing triple canopy, Whisks and attendant subordinate deities. Inner garbhagriha entrance is decorated with carvings in the form of kudus, attendant deities and celestial god-goddess. Outside of garbha griha there are a yakshi sculpture is installed and some other white stone ancient sculptures delineated in padmasana posture are installed.The temple has some other excellent masterpieces of Chalykyan art which are teerthankar sculptures in Kayotsarga and padmasana posture as well as yakshi sculptures. Two yakshi sculptures perhaps Ambika and Jawalamalini are depicted in temple which are hailed from 11th 12 century AD. Both the images are depicted in tribhang situation and carved very artistically. Ambika is depicted with two hands and Jawalamalini are depicted with four hands. Moreover the temple has a great ceiling structure which reminds us the carving of kamal basti Belgaum. The ceiling carving contains Jina saviors, celestial god-goddess, kudus, Simha mukhas and a lotus styled central portion which seems very beautiful. One kayotasarga Jina sculptures and two padmasana Parshwanatha sculptures are also very mesmeric. Inscriptions of Sedam :- Sedam town was anciently renowned as Sedimba which is evident by inscriptions found from this site. There are about 6 inscriptions found from this place which was first highlighted by Scholar P.B. Desai in his book Jainism in south India and some Jain epigraphs He illustrated these inscriptions very thoroughly enlightening on each aspect like art, history rituals and customs of Jain laymen and Chalukyan sovereigns. An inscription found from temple situated at settiyara oni records information about Loka Jinalaya which is clear indication to a Jain temple but this temple is not in existence presently, moreover it is surmised that the temple Loka Jinalaya must had been constructed by Loka of Haihaya family. Besides the image of Parshwanatha in chikka basadi, a few mutilated sculptures of Jina saviors were found by the side of well situated at settiyara oni.An inscription found from temple situated at settiyara oni records information about 300 merchants who endowed to construct the Shantinatha Jinalaya which was also known as Brahma Jinalaya. The inscription has record of Preacher Trividya Prabhachandra Bhattaraka who was superintendent of holy place of Virapura and belonged to Maduva gana. The inscription should be hailed from 24th Jan. 1124 under sovereignty of Tribhuvanmalladeva Vikrmaditya VI of Kalyani chalukyan Clan. An inscription hailed from 1138 AD found in a temple situated at potter’s colony. The inscription was contemporary to Chalukyan King Bhulokmalladeva or Someshwara III. The date assignable to him should be in between 1126 to 1138 AD. An inscription hailed from 1158 AD under sovereignty of Someshwara IV found from Temple situated in potter’s colony. The inscription is of later date than inscriptions found from settiyara’s oni temple. The inscription has a fabulous record of Jwalamalini Cult which was prevalent in Karnataka and Tamilnadu. Jawalamalini Stotra was composed by Indranandi at Malkhed. Exorcising rituals were performed by laymen in honor of Jawalamalini at Sedam and the town was a holy seat of Yapniya sangha. Goddess Sedimba of this town was none other than Jawalini wearing golden ear rings. |
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